शनिवार, 18 अप्रैल 2015

अगले जनम में आइंस्टीन

18 अप्रेल को आज ही के दिन 76 साल की उम्र में आइन्सटीन ने अंतिम साँस ली थी। अल्बर्ट आइंसटीन की स्कूली शिक्षा का आखरी साल उनके लिए आश्चर्यजनक रूप से ज्ञानवर्धक सिद्ध हुआ। स्विट्जरलैण्ड की शिक्षा पद्धति उन्हें बहुत भाई- क्योंकि यहाँ आकर उन्हें जर्मनी के सत्तावादी औपचारिक कठोर अनुशासन से मुक्ति मिली। एक ऐसा माहोल मिला जिसमें प्रतिरोध का डर नहीं था और शिक्षकों का छात्रों के प्रति नज़रिया भी वैसा नहीं था-जैसा सेना की एक टुकड़ी के प्रति होता है। यहाँ विद्यार्थियों के लिए स्वतंत्र ढंग से सोचने-समझने और क्रियाकलापों को करने का मैत्रीपूर्ण वातावरण उपलब्ध था। शिक्षा के महत्व पर बाद में बोलते हुए आइंसटीन ने कहा था- ‘शिक्षा केवल बहुत सारे तथ्यों की जानकारी हासिल करना नहीं है। शिक्षा का असली उद्देश्य है मस्तिष्क को इस तरह प्रशिक्षित करना कि हम चीजों के बारे में सोच-विचार कर वह ज्ञान हासिल कर सकें जो पुस्तकों से नहीं मिल सकता।’

अपने भुलक्कड़पन के लिए मशहूर आइंसटीन बहुत हाजिर जवाब भी थे। सोर्बोन में एक बार सवाल-जवाब में उन्होंने कहा था ‘देखिए सापेक्षता के सिद्धान्त की यदि पुष्टि हो जाती है तो जर्मनी मुझे आदर्श जर्मन कहेगा और फ्रान्स मुझे विश्व-नागरिक का सम्मान देगा। लेकिन यदि मेरा सिद्धान्त गलत साबित होता है तो फ्रान्स मुझे जर्मन कहेगा और जर्मनी मुझे यहूदी कहेगा।’ जर्मनी की नाजी गतिविधियों के चलते जब उन्हें अमेरिका में शरण लेनी पड़ी तो अनेक बड़े विश्वविद्यालयों के प्रस्ताव के बावजूद उन्होंने शांत बौद्धिक माहोल वाले अलबत्ता छोटे प्रिंस्टन विश्वविद्यालय को चुना। विश्वविद्यालय के प्रशासनिक अधिकारी द्वारा शोध के लिए आवश्यक उपकरणों की सूची माँगने पर आइंस्टीन का जवाब था ‘जी, मुझे आप एक ब्लेक बोर्ड, कुछ चॉक, कागज तथा पेंसिल दे दीजिए। और हाँ- एक बड़ी टोकरी भी, क्योंकि मैं काम करते वक्त गलतियाँ बहुत करता हूँ। जाहिर है कि छोटी टोकरी जल्दी भर जाएगी।’

हर वैज्ञानिक की तरह आइंसटीन भी ईश्वर में विश्वास नहीं रखते थे। दार्शनिक एरिक गुटकिग को एक पत्र में उन्होंने लिखा था भगवान मेरे लिए मानवीय कमजोरी से ज्यादा और कुछ नहीं है। लेकिन भारत आगमन के बाद आध्यात्म को लेकर उनके विचारों में जबरदस्त परिवर्तन हुआ। भारत के कुछ प्रसिद्ध सन्तों से मिलने के बाद तो वे यह भी कहने लगे थे कि आगामी सदियों में विज्ञान और आध्यात्म का एक-दूसरे में विलय हो जाएगा। यहाँ तक कि ब्रह्माण्डीय व्यवस्थापन को लेकर उन्होंने अपनी प्रसिद्ध टिप्पणी में कहा ‘ब्रह्माण्ड को लेकर ईश्वर पाँसों से नहीं खेलता। कहा जाता है कि जीवन के अंतिम वर्षों में जब उनसे यह पूछा गया कि अगले जन्म में वे क्या होना पसंद करेंगे तो आइंस्टीन का जवाब था कि यदि वह है तो अगले जन्म में मैं सन्त होना चाहँूगा।

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

राष्ट्रघाती वक्तव्य

मित्रो बैसाखी पर्व और बाबासाहेब भीमरावअम्बेडकर के जन्मदिन की हर्दिक शुभ कामनाएं !

राष्ट्र को सुदृढ़ और मंगल की ओर अग्रसर करने वाले इन दोनों ही आयोजनों के अवसर पर मैं उस राष्ट्रघाती वक्तव्य पर बात करना चाहूँगा जो सोशल मिडिया पर इन दिनों छाया हुआ है।जी हाँ मेरा आशय शिव सेना के राज्यसभा सदस्य और मराठी पत्रिका 'सामना'के कार्यकारी सम्पादक संजय राउत के उस बयान से है जिसमें उन्होंने मुस्लिम समुदाय को मताधिकार से वंचित करने की बात कही है। निश्चय ही यह गैर जिम्मेदारना और संविधान विरोधी वक्तव्य है और इसकी जितनी निंदा की जाए कम है।कांग्रेस नेता अभिषेक मनुसिंघवी ने इसे लेकर ट्वीट किया है कि भगवान शिव और हमारी सेना दोनों लोकतंत्र और धर्म निरपेक्षता के प्रतीक हैं,फिर शिव सेना क्यों अपने नाम को झुठलाने पर आमादा है। आप नेता आशुतोष ने मांग की है कि संजय राउत को गिरफ्तार किया जाना चाहिए और' सामना' के खिलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही करते हुए शिवसेना की मान्यता ख़त्म की जानी चाहिए क्योंकि उनका यह कृत्य संविधान विरोधी है।
उधर मजलिस-ए-इत्तेहादुल के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवेसी ने केंद्र सरकार और निशाना साधा है कि दुनिया की कोई ताकत किसी भी हिन्दुस्तानी के इस संविधान प्रदत्त अधिकार को छीन नहीं सकती। किसी माई के लाल में दम है तो छीन कर दिखाए।जमीयत उलेमा-ए-हिन्द(यूपी)के प्रदेश अध्यक्ष मौलाना अशहर रशीदी ने कहा है कि शिवसेना औरफ़िरकाकापरस्त ताकतें सविधान को आग लगाकर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की कोशिश कर रही हैं। सरकार ने हमेशा की तरह पल्ला झाड़ते हुए कहा है कि ऐसे विचार संविधान के खिलाफ है-लेकिन दोषियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही उसके स्तर पर हो इसे लेकर वह मौन है।
इधर फेसबुक पर वरिष्ठ हिंदी आलोचक और अब एक्टिविस्ट आदरणीय मोहन श्रोत्रिय ने अपनी वाल पर इसके विरुद्ध अभियान छेड़ते हुए लिखा कि-'न्यायालय इन हरकतों का संज्ञान लेना कब शुरू करेगा? संविधान की अवमानना और देश को खंडित करने का मामला क्यों नहीं बनता इनके खिलाफ़ ?'
कई कड़ी प्रतिक्रियाएं आईं। लेकिन डा.मनजीत की की प्रतिक्रिया खासी दिलचस्प है-मैं उसे हू -ब-हू प्रस्तुत कर रहा हूँ :

डॉ. विक्रम जीतः आश्चर्य ! संजय राउत का यह बयान भी मीडिया की धूर्तता का शिकार हो गया लगता है। एक मित्र की टिप्पणी है -
"अगर आप मराठी भाषी है और आप ने संजय राऊत का वह भाषण सुना है जहां उसने
मुसलमानों का मताधिकार स्थगित करने की बात की है - तो आप उनके कहने से
असहमत नहीं हो सकते। अगर असहमत हो रहे हैं तो आप का कोई स्वार्थ या
मजबूरी है । खैर, एक मराठी भाषी होने से मैं उनका भाषण पूरा समझ सकता हूँ
और उसका सही अनुवाद यहाँ दे रहा हूँ । मैं ये गैरंटी के साथ कह रहा हूँ
कि मीडिया ने जान बूझ कर झूठी रिपोर्टिंग की हुई है (कौनसी नयी बात है) ।
खुद ही पढ़ लीजिये ।
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ओवैसी 'भाई' मुसलमानों में और इस निमित्त से सम्पूर्ण देश में - जहर
फैलाने की कोशिश कर रहे हैं और इस से देश को खतरा है । मुसलमानों को इस
देश की मुख्य धारा से जुडने देना है या नहीं - हम प्रयत्न कर रहे हैं कि
उन्हें (मुसलमान) मुख्य धारा से जुड़ना चाहिए । लेकिन मुसलमानों के नए नए
नेता अपनी वोट बैंक की ठेकेदारी निर्माण करके बार बार मुसलमानों को मुख्य
धारा से जुडने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं । अब ये नयी कोशिश ओवैसी
बंधुओं से हो रही है ।

जिस तरह के उनके भाषण हमने मुंबई में हुई सभा में देखें उससे मुझे ये
एहसास होता है कि यह एक अत्यंत गंभीर बात है - इनके भाषण - हैदराबाद में
हो या देश में और राज्यों में कहीं दिये हों - हमने आज (सामना में) छाप
दिया है .... ये हिन्दू और मुस्लिम समाजों में सोच समझ कर नफरत और
दुश्मनी पैदा करनेवाले भाषण हैं । अगर मुसलमानों को सही अर्थ में खतरा
है, तो ऐसे नेताओं से है ।
और तब भी (भूतकाल में) बालासाहेब ने यह stand इसीलिए लिया था कि मुसलमान
समाज गरीब ही रहा है, पिछड़ा ही रहा है, अंधश्रद्धा के जुआँ के नीचे दबा
रहा है और उन्हें जान बूझ कर धर्मांध बनाया जा रहा है । इसका कारण भी यह
है कि जब तक वे धर्मांध नहीं बनेंगे और किसी एक भय के कारण मुख्य धारा से
नहीं टूटेंगे, तब तक इन मुसलमान सियासतदानों के दुकान नहीं चलेंगे । कभी
जमा मस्जिद के इमाम, उसके पहले जिन्ना, कभी मुलायम सिंह यादव, कभी
मुख्तार अंसारी और कभी यहाँ पर अबू आजमी - कब तक चलेगा ये?
अगर मुसलमान ये वोट बैंक की राजनीति रोकना चाहते हैं, अगर मुसलमान सही
अर्थ में अपना विकास चाहते हैं - केवल राजनैतिक नहीं .... बलासाहेब ने
कहा था कि कुछ समय के लिए मुसलमान समाज का मताधिकार (Voting Rights)
स्थगित कर दो - पता चल जाएगा कि ये जो मुसलमान नेता हैं, उनके सुख दुख
में कितने समय तक उनके साथ रहते है...