शनिवार, 27 मार्च 2010

सीढ़ियाँ

सीढ़ियाँ नापना चाहती हैं चोटी के रहस्य
तहखानों की गहराई
वैसे उनका ताल्लुक शिखर से अधिक है
रपट कर भी जा सकता है आदमी पाताल में

वे जुड़ी रहना चाहती हैं उस बच्चे से
जिसे फिक्र है बढ़ने-बडरने की
उनकी स्मृतियों में संचित हैं
चढ़ने-उतरने के तमाम नक्शे

सीढ़ियाँ चढ़ते हुए हमेशा लगता है
कि हमें कहीं पहुँचना है
कैसा लगता है सीढ़ियाँ उतरते हुए
झाँक कर देखें गहरी घाटी में

चढ़ने उतरने के सिलसिले के बीच
सीढ़ियाँ ठहरी हैं शताब्दियों से
उनकी ख्वाहिश है वे उड़ कर चली जाएं
सातवें आसमान से परे

1 टिप्पणी:

  1. आदरणीय शेखावत जी,
    सादर वन्दे!
    आखिर आप भी ब्लागर हो गए! बधाई हो!
    आपके ब्लाग पर भ्रमण कर आनंद आया।रचनाएं तो आपकी हमेशा ही प्रभावित करतीँ हैँ।यहां भी प्रभावित हुआ।
    कभी मेरे ब्लाग पर भी पधारेँ:-
    omkagad.blogspot.com

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