मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

राष्ट्रघाती वक्तव्य

मित्रो बैसाखी पर्व और बाबासाहेब भीमरावअम्बेडकर के जन्मदिन की हर्दिक शुभ कामनाएं !

राष्ट्र को सुदृढ़ और मंगल की ओर अग्रसर करने वाले इन दोनों ही आयोजनों के अवसर पर मैं उस राष्ट्रघाती वक्तव्य पर बात करना चाहूँगा जो सोशल मिडिया पर इन दिनों छाया हुआ है।जी हाँ मेरा आशय शिव सेना के राज्यसभा सदस्य और मराठी पत्रिका 'सामना'के कार्यकारी सम्पादक संजय राउत के उस बयान से है जिसमें उन्होंने मुस्लिम समुदाय को मताधिकार से वंचित करने की बात कही है। निश्चय ही यह गैर जिम्मेदारना और संविधान विरोधी वक्तव्य है और इसकी जितनी निंदा की जाए कम है।कांग्रेस नेता अभिषेक मनुसिंघवी ने इसे लेकर ट्वीट किया है कि भगवान शिव और हमारी सेना दोनों लोकतंत्र और धर्म निरपेक्षता के प्रतीक हैं,फिर शिव सेना क्यों अपने नाम को झुठलाने पर आमादा है। आप नेता आशुतोष ने मांग की है कि संजय राउत को गिरफ्तार किया जाना चाहिए और' सामना' के खिलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही करते हुए शिवसेना की मान्यता ख़त्म की जानी चाहिए क्योंकि उनका यह कृत्य संविधान विरोधी है।
उधर मजलिस-ए-इत्तेहादुल के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवेसी ने केंद्र सरकार और निशाना साधा है कि दुनिया की कोई ताकत किसी भी हिन्दुस्तानी के इस संविधान प्रदत्त अधिकार को छीन नहीं सकती। किसी माई के लाल में दम है तो छीन कर दिखाए।जमीयत उलेमा-ए-हिन्द(यूपी)के प्रदेश अध्यक्ष मौलाना अशहर रशीदी ने कहा है कि शिवसेना औरफ़िरकाकापरस्त ताकतें सविधान को आग लगाकर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की कोशिश कर रही हैं। सरकार ने हमेशा की तरह पल्ला झाड़ते हुए कहा है कि ऐसे विचार संविधान के खिलाफ है-लेकिन दोषियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही उसके स्तर पर हो इसे लेकर वह मौन है।
इधर फेसबुक पर वरिष्ठ हिंदी आलोचक और अब एक्टिविस्ट आदरणीय मोहन श्रोत्रिय ने अपनी वाल पर इसके विरुद्ध अभियान छेड़ते हुए लिखा कि-'न्यायालय इन हरकतों का संज्ञान लेना कब शुरू करेगा? संविधान की अवमानना और देश को खंडित करने का मामला क्यों नहीं बनता इनके खिलाफ़ ?'
कई कड़ी प्रतिक्रियाएं आईं। लेकिन डा.मनजीत की की प्रतिक्रिया खासी दिलचस्प है-मैं उसे हू -ब-हू प्रस्तुत कर रहा हूँ :

डॉ. विक्रम जीतः आश्चर्य ! संजय राउत का यह बयान भी मीडिया की धूर्तता का शिकार हो गया लगता है। एक मित्र की टिप्पणी है -
"अगर आप मराठी भाषी है और आप ने संजय राऊत का वह भाषण सुना है जहां उसने
मुसलमानों का मताधिकार स्थगित करने की बात की है - तो आप उनके कहने से
असहमत नहीं हो सकते। अगर असहमत हो रहे हैं तो आप का कोई स्वार्थ या
मजबूरी है । खैर, एक मराठी भाषी होने से मैं उनका भाषण पूरा समझ सकता हूँ
और उसका सही अनुवाद यहाँ दे रहा हूँ । मैं ये गैरंटी के साथ कह रहा हूँ
कि मीडिया ने जान बूझ कर झूठी रिपोर्टिंग की हुई है (कौनसी नयी बात है) ।
खुद ही पढ़ लीजिये ।
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ओवैसी 'भाई' मुसलमानों में और इस निमित्त से सम्पूर्ण देश में - जहर
फैलाने की कोशिश कर रहे हैं और इस से देश को खतरा है । मुसलमानों को इस
देश की मुख्य धारा से जुडने देना है या नहीं - हम प्रयत्न कर रहे हैं कि
उन्हें (मुसलमान) मुख्य धारा से जुड़ना चाहिए । लेकिन मुसलमानों के नए नए
नेता अपनी वोट बैंक की ठेकेदारी निर्माण करके बार बार मुसलमानों को मुख्य
धारा से जुडने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं । अब ये नयी कोशिश ओवैसी
बंधुओं से हो रही है ।

जिस तरह के उनके भाषण हमने मुंबई में हुई सभा में देखें उससे मुझे ये
एहसास होता है कि यह एक अत्यंत गंभीर बात है - इनके भाषण - हैदराबाद में
हो या देश में और राज्यों में कहीं दिये हों - हमने आज (सामना में) छाप
दिया है .... ये हिन्दू और मुस्लिम समाजों में सोच समझ कर नफरत और
दुश्मनी पैदा करनेवाले भाषण हैं । अगर मुसलमानों को सही अर्थ में खतरा
है, तो ऐसे नेताओं से है ।
और तब भी (भूतकाल में) बालासाहेब ने यह stand इसीलिए लिया था कि मुसलमान
समाज गरीब ही रहा है, पिछड़ा ही रहा है, अंधश्रद्धा के जुआँ के नीचे दबा
रहा है और उन्हें जान बूझ कर धर्मांध बनाया जा रहा है । इसका कारण भी यह
है कि जब तक वे धर्मांध नहीं बनेंगे और किसी एक भय के कारण मुख्य धारा से
नहीं टूटेंगे, तब तक इन मुसलमान सियासतदानों के दुकान नहीं चलेंगे । कभी
जमा मस्जिद के इमाम, उसके पहले जिन्ना, कभी मुलायम सिंह यादव, कभी
मुख्तार अंसारी और कभी यहाँ पर अबू आजमी - कब तक चलेगा ये?
अगर मुसलमान ये वोट बैंक की राजनीति रोकना चाहते हैं, अगर मुसलमान सही
अर्थ में अपना विकास चाहते हैं - केवल राजनैतिक नहीं .... बलासाहेब ने
कहा था कि कुछ समय के लिए मुसलमान समाज का मताधिकार (Voting Rights)
स्थगित कर दो - पता चल जाएगा कि ये जो मुसलमान नेता हैं, उनके सुख दुख
में कितने समय तक उनके साथ रहते है...

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