मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

अमरता के रास्ते

मुझे क्षमा करें महत्जन
मेरी क्षुद्रताओं के लिए
मैं झुकता हूँ घुटनों के बल
मामूली प्रार्थनाओं में
और माँगता हूँ विराट ईश्वर से
केवल मामूलीपन
कि मैं न थकूँ आदमी के होने से
बचे रहें आदमी में:
भय और शर्म
घृणा और प्रेम
उसका सर्द-गर्म खून
उसकी बेसब्री इरादे उसके
उसकी देह में ढला इस्पात

अमरता के तमाम रास्ते
जाते हैं उधर से

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