मुझे क्षमा करें महत्जन
मेरी क्षुद्रताओं के लिए
मैं झुकता हूँ घुटनों के बल
मामूली प्रार्थनाओं में
और माँगता हूँ विराट ईश्वर से
केवल मामूलीपन
कि मैं न थकूँ आदमी के होने से
बचे रहें आदमी में:
भय और शर्म
घृणा और प्रेम
उसका सर्द-गर्म खून
उसकी बेसब्री इरादे उसके
उसकी देह में ढला इस्पात
अमरता के तमाम रास्ते
जाते हैं उधर से
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