बुधवार, 29 अप्रैल 2009

ग़ज़ल

आग की आँख में पानी की तरह।
आँख का नूर निग्हेबानी की तरह।
हर हथेली में रस्म जि़न्दा है,
दोस्त रिश्तों की रवानी की तरह।
रेत में दूब, दूब में दरिया
एक मुसलसल–सी कहानी की तरह।
धूप धरती की पाँव बच्चे का,
सुर्ख़ सूरज पे निशानी की तरह।
आँत में रात है ब्यालू का बखत,
रोटियाँ रात की रानी की तरह।

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