उजाड़–बियाबान में बनाया मैंने
एक माटी का घर
घरों से घिरी दुनिया
कुछ और भरी–पूरी हुई
अगले दिन मैंने पूछी
रहमत चाचा की खैर–कुशल
सुदूर पड़ौस तक फैला
मेरा घर–द्वार
मैं जब–जब सोचता हूँ
तमाम चीज़ों तमाम लोगों के बारे में
तो गाँव, जिला, प्रान्त और राष्ट्र की सीमा में ही
सिमट कर नहीं रह जाता घर–संसार
मैं रोज प्रार्थना करता हूँ
‘हे पिता विश्व का कल्याण करो
सभी को आरोग्य दो! अभय दो! सन्मति दो!’
मेरी दिली ख्वाहिश है
कि अगली बार मैं चीखूँ
आकाशगंगा के सीमान्त पे
ताकि गैलेक्सियों के आर–पार बिखर जाएं
घरों की सरहदें
बहुत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंचिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.
गुलमोहर का फूल